महाभारत में 8 और 18 के पीछे का क्या रहस्य है?
महाभारत में 8 और 18 के पीछे का क्या रहस्य है?
प्रेम भारद्वाजमहाभारत युद्ध में 18 संख्या का बहुत महत्त्व है।
महाभारत की कई घटनाएँ 18 संख्या से सम्बंधित है।
आइए कुछ उदाहरण देखें:
*महाभारत का युद्ध कुल 18 दिनों तक हुआ था।
*कौरवों (11 अक्षौहिणी) और पांडवों (7 अक्षौहिणी) की सेना भी कुल 18 अक्षौहिणी थी।
*अक्षौहिणी सेना के प्रत्येक भाग की संख्या के अंकों का कुल जोड़ 18 आता है।
*महाभारत में कुल 18 पर्व हैं:
1.आदि पर्व
2.सभा पर्व
3.वन पर्व
4.विराट पर्व
5.उद्योग पर्व
6.भीष्म पर्व
7.द्रोण पर्व
8.कर्ण पर्व
9.शल्य पर्व
10.अश्वमेधिक पर्व
11. महाप्रस्थानिक पर्व
12.सौप्तिक पर्व
13.स्त्री पर्व
14.शांति पर्व
15.अनुशाशन पर्व
16.मौसल पर्व
17.स्वर्गारोहण पर्व
18.आश्रम्वासिक पर्व
गीता महाभारत का भाग है जिसमें कुल 18 अध्याय हैं:
1.अर्जुन विषाद योग
2.सांख्य योग
3.कर्म योग
4.ज्ञान कर्म संन्यास योग
5.कर्म संन्यास योग
6.आत्म संयम योग
7.ज्ञान विज्ञान योग
8.अक्षरब्रह्म योग
9.राजविद्या राजगुह्य योग
10.विभूति योग
11.विश्वरूप दर्शन योग
12.भक्ति योग
13.क्षेत्रज्ञविभाग योग
14.गुणत्रयविभाग योग
15.पुरुषोत्तम योग
16.दैवासुर सम्पद्विभाग योग
17.श्रद्धात्रयविभाग योग
18.मोक्ष संन्यास योग
गीता में ही श्रीकृष्ण ने एक आदर्श पुरुष के 18 लक्षण बताये हैं।
इस युद्ध के प्रमुख 18 सूत्रधार हैं:
1.धृतराष्ट्र
2.दुर्योधन
3.दुःशासन
4.कर्ण
5.शकुनी
6.भीष्म
7.द्रोण
8.कृपाचार्य
9.अश्वथामा
10.कृतवर्मा
11.युधिष्ठिर
12.भीम
13 अर्जुन
14.नकुल
15.सहदेव
16.द्रौपदी
17.विदुर
18.श्री कृष्ण
*महाभारत के युद्ध के पश्चात् दोनों ओर से केवल 18 योद्धा ही जीवित बचे। 3 कौरवों की ओर से (अश्वथामा, कृतवर्मा एवं कृपाचार्य) और 15 पांडवों (श्रीकृष्ण, पाण्डव, सात्यिकी इत्यादि) की ओर से।
*महाभारत को पुराणों के जितना सम्मान दिया जाता है। दोनों को महर्षि वेदव्यास ने ही लिखा और पुराणों की संख्या भी 18 है। इसके अतिरिक्त उप-पुराण भी 18 ही हैं।
*महाभारत में कुल लगभग 18 लाख शब्द हैं।
महाभारत का वास्तविक नाम "जय" (विजय) है और संस्कृत में जय की सांख्यिकी 18 बताई गयी है।
*श्री कृष्ण ने कंस का वध 18 वर्ष की आयु में किया। (कहीं-कहीं 16 वर्ष का भी वर्णन है।)
*जरासंध ने मथुरा पर 18 बार आक्रमण किया और 18 वर्षों तक आक्रमण करता रहा जिससे दुखी होकर श्री कृष्ण मथुरा छोड़ द्वारिका में बस गए।
*जिस प्रकार महाभारत में 18 अंक की महत्ता है उसी प्रकार श्री कृष्ण के जीवन में 8 अंक का बहुत महत्त्व है। उनके जीवन के कई घटनाक्रम है जो 8 अंक से जुड़े हैं:
*श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के 8वें अवतार थे।
*उनका जन्म रात्रि के 8वें प्रहर में हुआ।
*जब उनका जन्म हुआ तो उस लग्न पर 8 ग्रहों (शनि को छोड़ कर अन्य नवग्रह) की शुभ दृष्टि थी।
*उनका जन्म रोहिणी नक्षत्र के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था।
*वे अपने माता पिता की 8वीं संतान थे। उनके अन्य भाइयों के नाम थे - कीर्तिमान, सुषेण, भद्रसेन, ऋजु, सम्मर्दन, भद्र एवं संकर्षण (बलराम)।
*उनकी 8 मुख्य पत्नियाँ थी - रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवंती, कालिंदी, सत्या, मित्रविन्दा, लक्ष्मणा एवं भद्रा।
*उनके 8 प्रमुख पुत्र थे - प्रद्युम्न, भानु, साम्ब, वीर, श्रुत, प्रघोष, वृक एवं संग्रामजित।
*उनके 8 प्रमुख नाम थे - कृष्ण, गोपाल, गोविन्द, वासुदेव, मोहन, गिरधारी, श्याम एवं हरि।
*उनके जीवन में 8 नगरों का विशेष महत्त्व था - मथुरा, गोकुल, गोवर्धन, वृन्दावन, अवंतिका, हस्तिनापुर, द्वारिका एवं प्रभास क्षेत्र।
*उनके 8 प्रमुख मित्र थे - उद्धव, सात्यिकी, कृतवर्मा, सुदामा, अर्जुन, दारुक, घोर अंगिरस एवं श्रीदामा।
*उनके 8 प्रमुख शत्रु थे - कंस, जरासंध, पौण्ड्रक, शिशुपाल, रुक्मी, दन्तवक्र, शाल्व एवं दुर्योधन।
*श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के 8वें अध्याय - 'अक्षर ब्रह्मयोग' का विशेष महत्त्व बताया।
*महाभारत के युद्ध में कृष्ण ने मुख्यतः 8 बार अर्जुन के प्राणों की रक्षा की थी।
*ऐसा वर्णन है कि राधा सहित उनकी 8 प्रमुख गोपियाँ थी।
*श्री कृष्ण दिन में 8 प्रहर भोजन करते थे। यही कारण था कि जब वे 7 दिनों तक गोवर्धन उठाने के कारण भोजन नही कर पाए तो उसके बाद ब्रजवासियों ने उन्हें 8 × 7 = 56 भोग लगाए, जो आज भी लगता है।
स्रोत: श्रीकृष्ण और ८ अंक, महाभारत में १८ संख्या का महत्त्व, पौराणिक ग्रंथ, गीता जी, गूगल
चित्र स्रोत: गूगल
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