1 जनवरी 1948 खरसावां की मिट्टी आज भी उन बलिदानों की गवाह है, जिन्होंने झारखंड को झारखंड जैसा भविष्य दिया

 1 जनवरी 1948 खरसावां की मिट्टी आज भी उन बलिदानों की गवाह है, जिन्होंने झारखंड को झारखंड जैसा भविष्य दिया



खरसावां गोलीकांड झारखंड के इतिहास का काला अध्याय 

1 जनवरी, स्वतंत्र भारत का जलियांवाला बाग कांड। आज, जब देश नववर्ष का स्वागत कर रहा है, झारखंड के खरसावां में लोग उस दर्दनाक दिन को याद कर रहे हैं, जिसने 1 जनवरी 1948 को इतिहास पर एक अमिट काला निशान छोड़ दिया। यह घटना ‘खरसावां गोलीकांड’ के नाम से जानी जाती है और इसे स्वतंत्र भारत का पहला बड़ा गोलीकांड माना जाता है।



घटना 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद देशी रियासतों के पुनर्गठन का काम शुरू हुआ। खरसावां और सरायकेला, जो उस समय प्रिंसली स्टेट थे, उड़ीसा (अब ओडिशा) में मिलाने की योजना बनाई गई। लेकिन यहां के आदिवासी इस फैसले का पुरजोर विरोध कर रहे थे। उनकी मांग थी कि इन रियासतों को छोटानागपुर क्षेत्र (झारखंड) में शामिल किया जाए, ताकि उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान सुरक्षित रहे।

1 जनवरी 1948 को खरसावां में साप्ताहिक हाट बाजार का आयोजन हो रहा था। इस मौके पर करीब पचास हज़ार आदिवासी अपनी मांगों को लेकर एकत्र हुए थे। वे शांतिपूर्ण ढंग से सरायकेला-खरसावां के उड़ीसा में विलय का विरोध कर रहे थे और झारखंड के गठन की मांग कर रहे थे। लेकिन प्रशासन ने इस सभा को बर्दाश्त नहीं किया। उड़ीसा  पुलिस ने मशीनगनों के साथ भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए कुछ भगदड़ में मारे गए और कुछ घायलों को जिंदा कुओं में डाल दिया गया।


“इतिहासकारों और चश्मदीदों के मुताबिक, फायरिंग के बाद शवों और घायलों को उठाकर खरसावां के कुओं में फेंक दिया गया और उन्हें ढंक दिया गया।” घटना में मारे गए लोगों की संख्या आज भी विवाद का विषय है। कुछ स्रोतों के अनुसार, सैकड़ों आदिवासी मारे गए, जबकि स्थानीय लोग इसे हजारों में मानते हैं। परिणाम और प्रभाव खरसावां गोलीकांड ने झारखंड अलग राज्य आंदोलन को एक नई दिशा दी। यह घटना न केवल आदिवासी अधिकारों के संघर्ष का प्रतीक बनी, बल्कि इसने झारखंड के गठन की मांग को मजबूती प्रदान की। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने इस घटना की तुलना जलियांवाला बाग कांड से की थी।

हर साल 1 जनवरी को खरसावां में शहादत दिवस मनाया जाता है। हजारों लोग शहीद पार्क में इकट्ठा होकर उन वीर आदिवासियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिन्होंने अपनी जमीन, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इतिहास का एक अनकहा अध्याय इस घटना को स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और हृदय विदारक घटना माना जाता है। यह हमें यह सिखाती है कि संघर्ष और बलिदान के बिना अधिकारों की लड़ाई संभव नहीं। झारखंड और इसके आदिवासी समुदाय के लिए खरसावां गोलीकांड सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि उनके अदम्य साहस और बलिदान की कहानी है।


उन सभी शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि

                                              प्रेम भारती 

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